भारत की महानता वेद मंत्रों से है, धन दौलत और गगनचुंबी इमारतों से नहीं : पंडित श्रीकांत शर्मा

गोरखपुर l हम अंतरिक्ष यात्रा कर ले रहे हैं l बुलेट ट्रेन और हवाई जहाज का निर्माण करने का माद्दा भी हममें है लेकिन जिस ज्ञान-विज्ञान एवं महान धर्म-संस्कृत की वजह से हमारी पहचान दुनिया में अलग प्रकार की थी, उससे हम भटक गए हैं l विशेषकर आज की युवा पीढ़ी, बुद्धि के क्षेत्र में तो परचम लहरा रही है लेकिन भारत की महान परंपरा और धर्म संस्कृतिबोध से कटती जा रही है l यह बहुत ही चिंतनीय l ऐसे में चरित्रवान युवा का निर्माण हम सभी की बड़ी जिम्मेदारी बन गई है l
ऐसा मानना है कोलकाता से पधारे बाल व्यास पंडित श्रीकांत शर्मा जी महाराज का l वह श्रीमद्भागवत कथा एवं श्रीराम कथा प्रवचन के लिए 1 माह के प्रवास पर गोरखपुर पधारे हैं l बेतियाहाता स्थित विनोद शाह के आवास पर आहूत पत्रकार वार्ता में कथावाचक पंडित शर्मा ने कहा कि वह करीब 50 वर्षों से पूरे भारत में कथा प्रवचन करते आ रहे हैं l देश के विभिन्न प्रांतों के रहन-सहन और परिवेश से उनका गहरा नाता है l जहां कहीं जाते हैं कथा व्रत प्रवचन के दौरान समाज को सही दिशा में चलने की सीख जरूर देते हैं l सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अपना धर्म छोड़ना अर्थात पथ से हटना आज की युवा पीढ़ी की सबसे बड़ी समस्या है l किसी धर्म जाति में शादी विवाह कर लेना और फिर अल्प समय में रिश्ता टूट जाना, आज आम बात हो गयी है l समाज को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा l जितनी भी शिक्षण संस्थाएं हैं अथवा घर परिवार में अपने धर्म संस्कृति की शिक्षा से बच्चों को रूबरू कराना होगा l उन्हें यह बताना होगा की हम महान देश के महान नागरिक हैं l हमारी महानता धन दौलत और गगनचुंबी इमारतों से नहीं बल्कि वेद मंत्रों के ज्ञान से है l इसलिए हमें दुनिया की चकाचौंध से दूर रहते हुए अपनी खूबियों से अपने को विभूषित करना होगा l माता पिता को अपने बच्चों को आरंभ से ही गीता-रामायण और भारत की गौरवशाली इतिहास से ओतप्रोत करना होगा l ग से गधा नहीं गणेश पढ़ाना होगा l तभी हम अपनी और अपने देश की वैभवशाली संस्कृति एवं सभ्यता को अक्षुण रख पाएंगे l
बाल व्यास ने कहा कि सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम करने की जरूरत हैl शिक्षा से ही संस्कारवान युवा निकलेंगे और देश का गौरव बढ़ाएंगे l स्कूल कॉलेजों के पाठ्यक्रम बनाते समय विद्वतजन को इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि जो कुछ हम भावी पीढ़ी को परोसने जा रहे हैं वह देश और समाज हित में कितना उपयोगी है? क्या ऐसे पाठ्यक्रमों से बुद्धि के साथ चरित्र एवं संस्कार का निर्माण होगा अथवा नहीं l क्या वजह है कि सामाजिक विसंगतियां और सामाजिक बुराइयां नित्य प्रति बढ़ती जा रही हैं, इसकी न्यूनता के लिए भी नीति निर्माताओं, शिक्षालयों और समाज के प्रबुद्धजनों के साथ ही माता-पिता को भी गौर करना होगा l

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