आठवें पातशाह श्री गुरु हरकिशन महाराज जी का प्रकाश पर्व बहुत श्रद्धा पूर्वक मनाया गया

गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा जटाशंकर में आठवें पातशाह श्री गुरु हरकिशन महाराज जी का प्रकाश पर्व बहुत श्रद्धा पूर्वक मनाया गया। प्रातःकालीन विशेष दीवान में मुख्य ग्रथी द्वारा नितनेम एवं सुखमनी साहिब के पाठ के पश्चात हजूरी रागी जत्थे द्वारा मधुर वाणी में “श्री हरकिशन ध्याइए जिस डिठे सब दुख जाए “एवं अन्य गुरुवाणी शब्दों का कीर्तन किया गया अरदास उपरांत पंजाबी अकेडमी के सदस्य सरदार जगनैन सिंह नीटू द्वारा श्री हरकिशन साहब के प्रकाश पर्व पर प्रकाश डाला ।

बाला मित्र हरकिशन साहेब जी को पांच साल की उम्र में गुरु की गद्दी मिली


बहुत ही कम समय में गुरू हर किशन साहिब जी ने सामान्य जनता के साथ अपने मित्रतापूर्ण व्यवहार से राजधानी में लोगों से लोकप्रियता हासिल की। इसी दौरान दिल्ली में हैजा और छोटी माता जैसी बीमारियों का प्रकोप महामारी लेकर आया। मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील थे। जात पात एवं ऊंच नीच को दरकिनार करते हुए गुरू साहिब ने सभी जनों की सेवा का अभियान चलाया। खासकर दिल्ली में रहने वाले मुस्लिम उनकी इस मानवता की सेवा से बहुत प्रभावित हुए एवं वो उन्हें बाला पीर कहकर पुकारने लगे। दिल्ली चेचक महामारी के रूप में फेल गया तब गुरु जी अपने अंगूठे को ज़मीन में टिकाया तो पानी की धार निकल पड़ी और दिल्ली महामारी मुक्त हुआ लेकिन गुरु हरकिशन साहेब को चेचक ने घेर लिया। आज भी गुरु हरकिशन साहिब जी के द्वारा अंगूठे से निकली हुई धार बंगला साहिब गुरुद्वारे में कुंड के रूप में स्थापित और लोग श्रद्धा भाव से उस जल को ग्रहण करते हैं

शास्त्रों में बताया जाता है की दिन रात महामारी से ग्रस्त लोगों की सेवा करते करते गुरू साहिब अपने आप भी तेज ज्वर से पीड़ित हो गये। छोटी माता के अचानक प्रकोप ने उन्हें कई दिनों तक बिस्तर से बांध दिया। जब उनकी हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गयी तो उन्होने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अन्त अब निकट है। जब उन्हें अपने उत्तराधिकारी को नाम लेने के लिए कहा, तो उन्हें केवल बाबा बकाला’ का नाम लिया। यह शब्द केवल भविष्य गुरू, गुरू तेगबहादुर साहिब, जो कि पंजाब में ब्यास नदी के किनारे स्थित बकाला गांव में रह रहे थे, के लिए प्रयोग हुआ था।

अपने अन्त समय में गुरू साहिब सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यू पर रोयेगा नहीं। बल्कि गुरूबाणी में लिखे शबदों को गायेंगे। इस प्रकार बाला पीर धीरे से वाहेगुरू शबद् का उच्चारण करते हुए ज्योतिजोत समा गये।

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